देश में आतंकवादी बड़े पैमाने पर विध्वंसक कार्रवाइयां कर रहे हैं। इनके दुस्साहस का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि ये जम्मू-कश्मीर विधानसभा (19 अक्तूबर 2001) तथा देश के गौरव की प्रतीक संसद (13 दिसम्बर 2001) पर हमला करके 8 सुरक्षा कर्मियों सहित 9 लोगों को शहीद कर चुके हैं।

26 नवम्बर 2008 के मुम्बई हमलों, जिनमें 166 लोगों की मृत्यु तथा 300 के लगभग लोग घायल हो गए थे, के बाद से देश के 5 शहरों में 12 आतंकी हमले हुए जिनमें 100 के लगभग लोग मारे गए हैं। काफी समय से हैदराबाद आतंकियों के निशाने पर है। यहां 26 जनवरी 2001 को सचिवालय के बाहर, 21 नवम्बर 2002 को दिलसुख नगर में, 28 अक्तूबर 2004 को पानी की मेन पाइप लाइन, 4 नवम्बर 2004 को पुलिस कंट्रोल रूम, 12 अक्तूबर 2005 को एस.पी.एफ. कार्यालय, 7 मई 2006 को एक सिनेमाघर, 18 मई 2007 को मक्का मस्जिद व 25 अगस्त 2007 को फिर दिलसुख नगर में बम धमाकों में 58 लोगों की मौत हो चुकी है।

हाल ही में कर्नाटक में पकड़े गए लश्कर के एक माड्यूल में से भी एक ने बताया था कि हैदराबाद का दिलसुख नगर आतंकियों के निशाने पर है। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के अनुसार गुप्तचर ब्यूरो ने 16, 19 और 20 फरवरी को  4 शहरों हैदराबाद, मुम्बई, बेंगलूर व कोयम्बटूर में धमाकों की आशंका सम्बन्धी अलर्ट जारी किया था, परंतु इस अलर्ट का भी कोई लाभ न हुआ।

21 फरवरी को हैदराबाद के दिलसुख नगर में बस स्टैंड व 2 सिनेमाघरों के बीच 200 मीटर के दायरे में शाम 7 से 7.10 बजे के बीच 2 शक्तिशाली बम धमाकों में कम से कम 16 लोग मारे गए और 119 घायल हो गए।

2007 की भांति ही इस बार भी यहां 2 धमाके हुए, इस बार भी टिफिन, टाइमर, मुजाहिदीन की भांति बमों में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग व बम रखने के लिए साइकिल का इस्तेमाल हुआ। हर बम में कम से कम एक किलो विस्फोटक व 2 से 2.5 किलो छर्रे इस्तेमाल किए गए।

हैदराबाद के उर्दू दैनिक ‘सियासत’ के संपादक जहीर के अनुसार शहर में लगे 150 सी.सी.टी.वी. कैमरों में से 40 प्रतिशत खराब हैं। चर्चा है कि आतंकियों ने 4 दिन पहले ही दिलसुख नगर के सी.सी.टी.वी. कैमरे तार काट कर नाकारा कर दिए तथा बस स्टैंड की तरफ वाले कैमरों का रुख भी बदल दिया था।

1 अगस्त 2012 को श्री शिंदे के गृह मंत्री बनने के मात्र साढ़े 6 महीनों में हुआ यह दूसरा सीरियल बम धमाका है। उनके गृह मंत्री बनने के दिन ही शाम को पुणे में 4 धमाके हुए थे परन्तु उनमें कोई हताहत नहीं हुआ था। वे बम भी साइकिलों पर ही रखे गए थे और उनमें भी अमोनियम नाइट्रेट ही प्रयुक्त किया गया था।

आतंकियों के आगे सरकार की बेबसी का अनुमान राहुल गांधी द्वारा 14 जुलाई 2011 को उड़ीसा में दिए इस बयान से लग जाता है कि ‘‘हर समय आतंकवादी हमलों को रोकना असंभव है। देश में एक-दो आतंकी हमले होंगे ही। इनसे तो अमरीका भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।’’

देश में फैल रहे आतंकवाद बारे विशेषज्ञों का कहना है कि यह सरकार की ढुलमुल नीतियों का नतीजा है। अव्वल तो अभियुक्त पकड़े नहीं जाते और यदि पकड़े जाते हैं तो अदालती कार्रवाई में ही वर्षों बीत जाते हैं और अदालत द्वारा सजा सुना भी दी जाए तो सरकार की तुष्टीकरण की नीति के कारण तथा एक वर्ग विशेष के नाराज हो जाने के डर से उस पर वर्षों अमल नहीं हो पाता।

इस कारण लोगों की जो हमदर्दी मृतकों और घायलों से होती है, मुकद्दमे लटकने व समय बीतने के कारण वे पृष्ठभूमि में चले जाते हैं और निहित स्वार्थी तत्व अपराधियों की बीमारी, लम्बे समय तक नजरबंदी और उनके परिवार की दयनीय हालत आदि के बहाने अपराधियों को बचाने का अभियान छेड़ देते हैं।

हाल ही में अफजल गुरु को फांसी के विरोध में कश्मीर में अलगाववादी संगठनों द्वारा कई दिन के बंद का आयोजन, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता यासीन मलिक द्वारा उसके समर्थन में पाकिस्तान में एक दिन की भूख हड़ताल और आतंकवादी हाफिज सईद के साथ भेंट इसी का प्रमाण है।

मानव अधिकारवादी भी अपराधियों को फांसी दिए जाने के विरुद्ध शोर मचाना शुरू कर देते हैं जबकि वे कभी भी पीड़ितों के पक्ष में आवाज नहीं उठाते। आखिर किसी भी बम विस्फोट के मृतकों के संबंध में उन्होंने अपनी जुबान कभी नहीं खोली।           
                                    
ऐसी अप्रिय स्थिति को टालने और देश से आतंकवाद को समाप्त करने का मात्र एक ही उपाय है कि अपराधियों के पकड़े जाने पर उनके विरुद्ध तत्काल अदालती कार्रवाई करके उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचा दिया जाए ताकि न्याय में विलंब के परिणामस्वरूप उनके विरुद्ध पैदा होने वाली तथाकथित ‘सहानुभूति की लहर’ का लाभ उठाने का किसी को भी अवसर न मिले।